Mystery - आज कहाँ पर है ये 7 चिरंजीवी | 7 immortal

7 Chiranjeevi of Hindu Mythology 

Mystery - आज कहाँ पर है ये 7 चिरंजीवी | 7 immortal


सात चिरंजीवी

दोस्तो सनातनी धर्म ग्रंथों में सात चिरंजीवी का वर्णन दिया गया है और वह आज यानी कि कलयुग में कहाँ पर है उसका भी वर्णन दिया गया है। जिसे आपको जरूर से जानना चाहिए तो वह सात चिरंजीवी भगवान विष्णु के दसवें अवतार हैं यानी की भगवान कल्कि का इंतजार कर रहे हैं |अपने पुराण और ग्रंथों में से कुछ ऐसी जगह हैं जहाँ पर सात चिरंजीवी होने का दावा किया जाता है। 

भगवान परशुरामजी

मित्रों हमारे साथ सात चिरंजीवी में सबसे पहला नाम आता है भगवान परशुरामजी का। जो भगवान विष्णु के छठे अवतार भी है तो कथा के अनुसार एक बार क्रोध में महर्षि जमदग्नि जी ने भगवान परशुराम जी को अपनी माता का वध करने का कहा था तब भगवान परशुराम जी ने उसी समय अपनी माँ का सर धड़ से अलग कर दिया था तो वो देखकर जमदग्नि जी ने भगवान परशुराम जी को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। तो चिरंजीवी होने के कारण उनके प्रमाण महाभारत काल में भी मिलते हैं। उसके अलावा महाभारत काल में उनका निवास स्थान महेंद्रगिरि पर्वत था | और आज कलयुग में भी वो इसी पर्वत पर अपनी तपस्या में लीन होकर कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

हनुमानजी

उसी के साथ इन दिव्य पुरुष में दूसरा नाम महापुरुष राम भक्त हनुमान जी का आता है। कथा के अनुसार हनुमानजी को माता सीता ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था और भगवान श्रीराम ने बजरंगबली को कलियुग के अंत तक धर्मा और रामकथा का प्रचार करने की आज्ञा दी थी। तो आज भी हनुमानजी जीवित होने के प्रमाण कई जगह पर मिलते हैं। परंतु महाभारत के वनपर्व के अध्ययन के अनुसार, एक बार जब भीम द्रौपदी के लिए पुष्पा लेने के लिए गंधमादन पर्वत की ओर जा रहे थे |


तो तब भीम की मुलाकात रास्ते में हनुमान जी से हुई थी। तो आज भी कहा जाता है कि भगवान हनुमान जी आज भी गंधमादन पर्वत पर ही रहते है। उसके अलावा हर 41 साल के बाद हनुमानजी श्रीलंका के मातम का बिल को ब्रह्मज्ञान देने के लिए आते हैं तथा जब पाप की सीमा बढ़ जाएगी तब भगवान कल्कि इस पृथ्वी पर अवतरित होंगे। तब हनुमान जी एक बार फिर भगवान श्री कल्कि के अवतार में प्रभु श्रीराम जी के दर्शन करेंगे और भगवान कल्कि के साथ मिलकर धरती पर से अधर्म और पाप का नाश करेंगे।

राजा बली


बढ़ते आगे और जानते हैं कि कौन है हमारे तीसरे चिरंजीवी तो वो हैं राजा बली तो राजा बली श्री हरि भक्त प्रहलाद के वंशज से आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार राजा बलि को अपने पर बहुत घमंड हो गया था। तब भगवान विष्णु ने राजा बलि का घमंड तोड़ने के लिए वामन अवतार लिया था तो एक बार वामन देवता राजा बली के यज्ञ में शामिल हो गए थे और उसी दौरान राजा बलि ने सभी ब्राह्मण को कुछ न कुछ दान दे रहे थे। जब वामन देवता की बारी आई तो वामन देवता ने तीन पग भूमि मांग ली। 

राजा बली से तब वामन देवता ने अपना विराट रूप करके पहले पग में देवलोक, दूसरे पग में पृथ्वी और पाताल लोक नाप लिया था। तब राजा बलि ने वामन देवता को तीसरा पग अपने सर पर रखने का कहा। तब भगवान विष्णु ने राजा बलि से प्रसन्न होकर उन्हें पाताल के सुतललोक में बसा दिया था, जिसे इंद्र भी नहीं पा सकते थे। तो आज भी कहा जाता है कि राजा बलि सुतललोक में भगवान कल्कि की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

महर्षि व्यास


तो मित्रों अब हम बात कर लेते है की हमारी चौथी चिरंजीवी यानी कि महर्षि व्यास के बारे में महर्षि व्यास को वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने चारों वेद महाभारत, 18 पुराण और भागवत गीता लिखी थी। उसके अलावा महर्षि वेद व्यास जी ने भगवान कल्कि के जन्म से पहले ही उनके अवतार के बारे में ग्रंथों में वर्णन कर दिया था |

तो महर्षि वेद व्यास जी बहुत ही तपस्वी होने के कारण भगवान कल्कि के दर्शन के लिए जी आज भी अपनी तपस्या में लीन होकर कल्कि अवतार का इंतजार कर रहे हैं, जो आज हिमालय के पहाड़ों में कहीं पर है |

विभीषणजी 


तो अब महर्षि वेद व्यास जी के बाद हमारे पांचवें चिरंजीवी महापुरुष हैं विभीषण जी | मित्रों हम सभी को पता होगा कि विभीषण जी हनुमान जी की तरह ही प्रभु श्रीरामजी के अनन्य भक्त थे क्योंकि जब लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर दिया था तब विभीषण जी ने रावण को काफी समझाने का प्रयास किया था फिर भी रावण नहीं माना था।

तो जिसके बाद विभीषण जी ने लंका को छोड़कर भगवान श्री राम जी की सेवा में चले गए थे और धर्म का साथ दिया था तो यहीं कारण से भगवान श्री राम जी ने विभीषण जी को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। मान्यता के हिसाब से आज भी विभीषण जी श्रीलंका के जंगलों में कहीं पर है जो आज भी प्रभु विष्णु जी के अवतार कल्कि से मिलने के लिए इंतज़ार कर रहे हैं। 

अश्वत्थामा


तो अब बात करलेते है हमारे अगले चिरंजीवी यानी की अश्वत्थामा की जी ने चिरंजीवी होने का वरदान नहीं मिला था परन्तु वो एक श्राप की मुक्ति के लिए आज भी भगवान कल्कि का इंतजार कर रहे हैं। तो ये कथा महाभारत काल की है जब अश्वत्थामा ने और अनीती से ब्रह्मास्त्र चलाया था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को कलियुग के अंत तक भटकने का श्राप दिया था तो प्रचलित मान्यता के हिसाब से। आज भी अश्वत्थामा मध्यप्रदेश के असीरगढ़ किले में मौजूद प्राचीन शिव मंदिर में हर दिन पूजा करने के लिए आते हैं। 

कृपाचार्य


तो दोस्तों अब हमारे आखिरी और सातवें चिरंजीवी यानी की कृपाचार्य जी के बारे में बात कर लेते हैं। तो मित्रों शायद आपको पता नहीं होगा कि कृपाचार्य जी की गणना सप्त ऋषि में की जाती है और कहा जाता है कि उन्होंने चिरंजीवी होने का वरदान अपनी कठिन तपस्या से मिला था। वहीं पर कुछ लोगों का मानना है की उनको चिरंजीवी होने का वरदान उनकी निष्पक्षता और आधार पर न्याय करने से मिला था। 

कथा के अनुसार वो आज भी हिमालय के पहाड़ों में कहीं पर है और कलयुग में कृपाचार्य जी ने भगवान कल्कि के साथ मिलकर अधर्म का नाश करेंगे। तो मित्रों ये थे हमारे साथ चिरंजीवी जो कलयुग में भगवान कल्कि के अवतरित होने का इंतजार कर रहे हैं, जो कलयुग में हमारे सामने आकर भगवान कल्कि का साथ देकर धरती पर से अधर्म का नाश करेंगे 

धन्यवाद।


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