रहस्य - Konark sun temple history in Hindi |118 साल से बंद है कोणार्क का रहस्यमय दरवाजा | konark nu surya mandir
118 साल से बंद है कोणार्क का रहस्यमय दरवाजा
मित्रों, भारत देश में एक ऐसा मंदिर है जो आज के साइंस को भी हैरान कर देता है, जो पिछले 118 साल से भारत सरकार भी उस मंदिर का दरवाजा तक को भी नहीं खोल पाई है। उसके साथ उस मंदिर से जुड़े बहुत से रहस्य है जैसे कि कहा जाता है कि ये मंदिर श्रापित है। ये मंदिर अब भी अधूरा है। इस मंदिर में आज भी रातों में नर्तकी के नाचने की आहट सुनाई देती है। उसके अलावा इस मंदिर के शिखर पर 52 टन का एक चुंबक लगा था। वो क्यों लगा था जिसके बारे में आज हम जानेंगें
और इस मंदिर का आर्किटेक्चर और एंजिनीरिंग कितना उम्दा है की आज के आधुनिक युग में भी उसे बनाने में बड़े बड़े इंजीनियर के दांत खट्टे हो जाते हैं? तो ऐसा क्या रहस्य है इस मंदिर में जिसकी खोज आज भी आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट कर रहा है, तो मित्रों आज की Article में इस कोणार्क मंदिर के बारे में इसी तरह की और भी बहुत सी रहस्यमय बातें आपके साथ शेयर करने वाले हैं ?
तो चलिए अब शुरू करते हैं मित्रों को नाक सूर्य मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और भगवान सूर्यनारायण जी का ये मंदिर भारत के 10 प्रमुख भव्य मंदिरों में शामिल होता है। उसके अलावा बात करें इस मंदिर के इतिहास की तो इस मंदिर को पूर्व गंगा डाइनैस्टिक के राजा नरसिंहा देव के द्वारा 1285 ईस्वी में बनाया गया था और ये मंदिर पूरी तरह से भगवान सूर्य नारायण को समर्पित था |
क्योंकि हम सभी को पता है कि भगवान सूर्यनारायण देव को पूरे ब्रह्मांड का स्रोत कहा जाता है तो इस मंदिर का निर्माण भी कुछ इस प्रकार से किया गया था जैसे एक रथ में 12 विशाल पहिये लगाए हों और इस रथ को सात बड़े और ताकतवर घोड़े खींच रहे हो तो दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है की एक मंदिर नहीं परंतु साक्षात सूर्यनारायण देव का रथ हो। उसके अलावा मंदिर के दोनों तरफ के बार आप आइये सुंदर और प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग का नमूना दर्शाते हैं। जैसे की 12 पहिये 12 महीनों को संबोधित करते हैं।
उसके साथ हर चक्र हर दिन का समय दिखाता है। अब स्वाभाविक बात है के उस जमाने में घटिया तो थी नहीं तो लोग इन चक्रों को देखकर समय का अंदाजा लगाते थे और जब सूर्य की पहली किरण इस मंदिर के सूर्यदेव की मूर्ति पर पड़ती थी तब भी मंदिर बहुत ही अद्भुत और चमत्कारी लगता था और उसके साथ इस मंदिर के शिखर की ओर से जब सूर्य उगता और ढलता था तब इस मंदिर की भव्यता और भी निखर जाती थी और इस मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियां
तो नक्काशी कुछ अलग ही प्रकार की प्राचीन आर्किटेक्चर की गवाही दे रही है, जिसे आज के आधुनिक युग में भी नहीं बनाया जा सकता है। उसके साथ फेमस कहानी के अनुसार इस मंदिर के शीर्ष पर 52 टन का एक चुंबक लगाया गया था जो इतना ज्यादा स्ट्रांग था की समुद्र के ऊपर चढ़ने वाले पानी के जहाज के कंपास भी काम करना बंद कर देते थे, जिसकी वजह से वो अपना रास्ता भटक जाते थे और कुछ लोगों का कहना है कि
उस 52 टन के चुंबक को लगाने का पीछे का कारण मंदिर की कंस्ट्रक्शन और सूर्यनारायण देव की मूर्ति थी। तो बात ऐसी थी कि इस मंदिर के निर्माण में दो पत्थरों के बीच में एक लोहे की प्लेट लगाई जाती थी, जिससे मंदिर के शिखर पर रखा 52 टन का एक चुंबक इन लोहे के पिलर को संतुलित करता था और भगवान सूर्य नारायण की मूर्ति हवा में तैरती हुई रहने की वजह भी ये 52 टन का चुंबक ही था जिसे बाद में विदेशी ताकत के द्वारा निकालकर ले जाया गया था।
वो कहानी के अनुसार पोर्टल नाविकों ने ये चुंबक एक बार अपने साथ लेकर चले गए थे जिसकी वजह से मंदिर से मैग्नेट निकलते ही यह मंदिर गिरना स्टार्ट हो गया था क्योंकि चुंबक निकलते ही मंदिर के बीच में प्लेट का संतुलन हिलने लगा था तो मंदिर को टूटते हुए देखते वहाँ के लोगों ने सूर्यनारायण देव की मूर्ति को निकालकर पूरे टेम्पल में कर दिया था जो कहा जाता है। आज भी उस मंदिर में है और एक मूर्ति दिल्ली के नेशनल में भी है। हालांकि दोनों में से असली मूर्ति कौन सी है?
उसका दावा आज तक भी कोई नहीं कर पाया है। उसके अलावा जो हम आज के मंदिर को देख रहे हैं, वह पूरा मंदिर है ही नहीं। दरअसल इस मंदिर में टोटल तीन मंडप थे।
जिसमें से दो मण्डप बहुत साल पहले टूट गए थे। हालांकि आज सिर्फ एक ही मंडप बाकी रहा है और कुछ लोगों का कहना है की वो दो मंडप को भी आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़ दिया गया था। हालांकि उसके कुछ एविडन्स नहीं है और भूतकाल में आज हम जो मंदिर देख रहे उसके ऊँचाई उससे भी ज्यादा थी। आप इस मंदिर की उचाई का अंदाजा इस प्रकार से लगा सकते हो की उस टाइम पर समुद्र में चलने वाले जहाजों को इस मंदिर का शिखर बहुत आसानी से दिख जाता था।
और दवाएं भी किया जाता है की कोणार्क पहले बहुत बड़ा टाउन हुआ करता था परन्तु जैसे ही सोलहवीं सदी में सूर्यनारायण देव की मूर्ति हटी वैसे यहाँ पर पर्यटकों का आना कम हो गया और देखते ही देखते ये पूरा नगर वीरान हो गया और ये मंदिर के सभी एंट्री गेट को आज से 118 साल पहले ही बंद कर दिया गया था। तो कहानी के अनुसार साल 1903 में जॉन वुड बढ़ने इस मंदिर को चारों तरफ से ऊंची ऊंची दीवारों से ढककर अंदर की तरफ रेत डाली थी।
तो सवाल ये उठता है की ऐसा तो क्या हुआ जो अचानक इस मंदिर को उनकी ऊंची दीवारों और रेत से ढक दिया? जिससे इस मंदिर को ज्यादा रहस्यमय बनाती है तो लोगों के अनुसार उसके बाद में इस मंदिर को कई बार खोलने का प्रयास किया गया था परंतु हर बारी कोई भी गवर्नमेंट आज तक उस मंदिर को खोलने पर अपनी मुहर नहीं लगा सकी है, जिससे इस मंदिर का इतिहास ज्यादा रहस्यमय बन जाता है। ऐसा करके आज 118 साल बीत चूके हैं, परंतु आज भी एक मंदिर नहीं खुल सका। ये
तो मैं उम्मीद करता हूँ कि मंदिर जल्द से जल्द खुले और इन सभी रहस्यों से पर्दा उठे।
धन्यवाद
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